भारत को त्यौहारों और पर्वों का देश कहा जाता है, हमारा देश एक ऐसी विशाल एवं समृद्ध संस्कृति का उदाहरण विश्व के सामने रखता है जहां प्रकृति, संबंधों, जीविका आदि सभी को सम्मान दिया जाना एक परम्परा के समान है. "भाई दूज" का पर्व जो दिवाली के दो दिन बाद आता है, ऐसी ही पवित्र परम्परा का परिचायक है.
सनातन धर्म में भाई-बहन के प्रेम भरे रिश्ते को ओर अधिक निखारने के लिए दो प्रमुख त्यौहार मनाये जाते हैं. जिनमें पहला श्रावण मास की पूर्णिमा को आने वाला रक्षाबंधन है, जिसमें भाई अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है और दूसरा "भाई दूज" है. इस त्यौहार में बहन अपने भाई की लम्बी आयु और यशस्वी जीवन के लिए प्रार्थना करती है.
कार्तिक मास की द्वितीय को मनाये जाने वाले इस त्यौहार को यम द्वितीया या भ्रात द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. इस पर्व से जुडी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की संतान यमुना और यमराज का आपस में बेहद स्नेह था. कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया, इस पर यमराज ने सोचा कि मुझे तो कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता है लेकिन मेरी बहन कितने प्रेम से मुझे आमंत्रित कर रही है इसलिए उन्होंने यमुना की बात मानते हुए उनके घर पहुंचकर भोजन किया और इस दौरान उन्होंने नरक में निवास करने वाले जीवों को भी मुक्त कर दिया. बहन यमुना के आथित्य से प्रसन्न होकर यमराज ने बहन को मनवांछित वर मांगने के लिए कहा, जिस पर यमुना ने कहा कि, जो भी बहन आज के दिन अपने भाई को प्रेम सत्कार से तिलक करें, उसे भोजन कराये, उन्हें तुम्हारा भय न रहे. इस पर यमराज ने उन्हें तथास्तु कहते हुए विदा ली. तभी से यह कहा जाता है कि जो भाई बहन भाई दूज के दिन प्रेम से पूजन करते हुए एक साथ भोजन करते हैं उन्हें यमराज का भय नहीं रहता. इस दिन यमुना में स्नान और यमराज व यमुना के पूजन का भी बेहद महत्त्व है.